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सारी ऋतुएं मुझसे ले लो
प्रेम ऋतु मेरा लौटा दो
भीगा था मैं जिस बारिश में
फिर से वो सावन लौटा दो..।।
तुम ले लो सारा उजियारा
घना अंधेरा मैं ले लूंगा
ले लो रात चाँदनी सारी
तारों की टिम-टिम लौटा दो..।।
झोली भर खुशियाँ तुम ले लो
मैं अंजुरी भर दुःख ले लूंगा
हर मुस्कान मेरी तुम ले लो
खुशियों के आंसू लौटा दो..।।
जीवन बगिया के फूलों की
तुम सारी खुशबू भी ले लो
पुष्पों पर इतराने वाली
भौरों की गुंजन लौटा दो..।।
जो संग्रह है अर्पण कर दूं
खुद को आज समर्पण कर दूं
रीति-नीति तुम सारे ले लो
मेरी प्रीति मुझे लौटा दो..।।
मेरी प्रीति मुझे लौटा दो..।।
***विजय कनौजिया***
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ग्राम व पत्रालय-काही
जनपद-अम्बेडकर नगर (उ0 प्र0)