अनमोल जीवन रास ना आया

युगो युगो से था प्रयासरत,पर मृत्यु फतह न वो कर पाया।

इच्छानुसार जीवन जी लेता, पर उसको भी उसने गंवाया।

जन्म मरण के बंधन से,आज तक कोई भी ना बच पाया।

जीवन मृत्यु कालचक्र, जो समझा हर पल आनंद उठाया।

आत्मा अमर, यह रहस्य कुछ बिरलो के ही समझ आया।

गीता उपदेश आधार बना,खुद समझा सबको समझाया।

मोह माया जो फसा रहा,वो कीचड़ से बाहर ना आ पाया।

अपने कर्मों से सदा उसने,‌ मोक्ष मार्ग को ऐसे ही गंवाया।

अकाल मृत्यु दिया निमंत्रण, कर गलती हर्जाना चुकाया।

देख मौत को करीब,नादां कुछ भी ना वो अब कर पाया।

एक एक पल को जी लेता,अनमोल जीवन रास ना आया।

आज अपने ही कर्मों से,काल ग्रास बनता वो नजर आया।

ऐसा नहीं ना समझाया ,हर कदम पर भटकने से बचाया।

अपनी होशियारी  में रहा वो वीणा,तभी दुर्गति को पाया।

वीणा वैष्णव रागिनी

   राजसमंद

   राजस्थान