“माँ! देखो यह शादी का कार्ड कोई बाहर से दरबाजा के अंदर सरका दियाहै ।”— दस-बारह वर्ष की नीलू अपने माँ को कहती है। “यह कौन आदमी है,जो निमंत्रण चुपके से देता है।हम घर में हीं हैं।निमंत्रण घर आकर ससम्मान देना चाहिए।देख तो कौन है?” “माँ!यह कोई ‘मनोहर बज्र’ है।कौन है यह।
माँ के दिमाग में सारी घटनाऐं चलचित्र सा चलायमान हो जाता है।यह वही लड़का है,जो उसकी बड़ी बेटी माला के पीछे बराबर पड़ा रहता था।अनावश्यक मदद करता था। कालेज के रास्ते छेड़ता और तंग करता था।उसे अकेले में कहीं जाने के लिए कहता था।
माला कालेज सुन्दरी थी।उसके सुन्दरता की चर्चा अक्सर समाज में और रिश्तेदारों में होती रहती थी।स्नातक के बाद पहली प्रस्ताव में उसकी शादी तय हो गई।
यही लड़का एक दिन उसी सुनसान सड़क पर माला से मिला और फुहड़पन से शादी का प्रस्ताव दे दिया।उसके अश्लील व्यवहार से तंग आकर माला ने उसे झिड़क दिया।इस पर वह चैलेंज देकर कहा –”देखते हैं कैसे तुम्हारी शादी होती है।तुम मेरी नहीं होगी तो किसी की नहीं होने दूँगा।”
एक दिन उसी सुनसान सड़क पर,हेलमेट और गमछा से मुँह ढक कर मोटरसाइकिल से पीछे से आकर चेहरा पर तेजाब फेंक दिया।इस अप्रत्याशित घटना से वह एकदम टूट गई।उसका चेहरा झुलस कर विकृत हो गया ।
बरसों इलाज के साथ-साथ मुकदमा भी चला। ये तो जी जान लगा दिये बेटी को न्याय दिलाने के लिए ।गवाह और सबूत के अभाव में इस बज्र को मात्र तीन साल की सजा हुई। माला की शादी उसी समय टूट गई।फिर इसने शादी नहीं करने का निश्चय कर लिया।क्या करती,वह न सुनना नहीं चाहती और न हीं किसी का एहसान लेना चाहती।अब वह बंगलौर में नौकरी कर अपने पैरों पर खड़ी हो रही है।
“इस कार्ड का क्या करें माँ!”–नीलू के बात से उसकी तंद्रा भंग होती है–यह लड़का मेरी बेटी का जीवन बर्बाद कर अपना घर बसा रहा है,और निमंत्रण मुझे भेजा है।मुझे चिढाने के लिए, या यह कार्ड तमाचा है समाज पर,या ऊँगली उठा रहा है न्याय व्यवस्था पर।
पंडित चन्द्रशेखर,
हजारीबाग ।