में, में हूँ,

चाहे जैसी भी हूँ…

ख़ुद से ही खुश हूँ,

चाहे कैसी भी हूँ…

   न में ख़ूबसूरत, न छरहरी,

   ना ही नायिकाओं सी काया है मेरी…

   पर ख़ुद पे ही है नाज़,  

   पुरकशिश अदा है मेरी… 

क्या करुँ क्या नहीं,  

अब नहीं करनी किसी की परवाह…

नहीं करना कोई ख़याल, 

अब तो लगता है वही करुँ,

जो दिल में दबा के रखी थी चाह…

   बच्चे उड़ चुके या उड़ने वाले हैं, 

   घोसलों से नई दिशाओं में…

   हम भी चुनेगें अब अपने पसंद की ज़मीं, 

   और आसमां नई उम्मीदों में…

अब अपने घोंसले को ही नहीं, 

ख़ुद को भी सजाना है…

बहुत मनाया सबको,

अब ख़ुद को भी मनाना है… 

   सूख चुकी उम्मीदों को, 

   फिर से सींचना है…

   नाराज़ हुई ख्वाहिशों को 

    कस के गले लगाना है…।।

में हूँ जैसी भी खुद के लिये

अच्छी हूँ।

अंजू जांगिड़”राधे”

सोजत रोड राजस्थान