कविवर अटलजी
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अटल जैसा होना
और अटल रहना
अपने सिद्वांतो पर
आज किसी के बस
में कदापि नहीं।
सत्ता जब नही थी
और जब सत्ता थी
अटल अटल थे
कभी सत्ता के लिए
समझौता किया नहीं।
अपनी निस्वार्थ सेवा
के सेवाभाव को सदा
समर्पित देशसेवा भाव
रखते हुए देश को
अपने से पहले रखा ,
न्याय के लिए संघर्ष
अन्याय के सामने
कभी झुके नही,
अटल अटल रहें,
लोक आचरण का सबक
सीखा कर सुशासन का
ध्वज फहराकर देश से
हो गये बिदा ,पर अटल
सत्य तो ये ही है
आज भी मानवता का
अटल पुंज कोई है
हमारे सामने ,वो हमारे
कविवर अटल ही है।
उनकी कविता हमारी
राहें आसान करती है
“टूटे हुए सपनों की
कौन सुने सिसकी
अंतर की चीर व्यथा
पलकों पर सिसकी,
हार नहीं मानूंगा
रार नहीं ठानूंगा
काल के कपाल पर
लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं”
-लाल बहादुर श्रीवास्तव
-9425033960