बेटी का दर्द बेटी जाने

आज एक मैडम से मिलना था ,जो सरकारी सेवा में उच्च पद पर थी |मैं और मेरी मित्र जो कि पत्रकार के साथ सोशल वर्कर भी है ,किशोर होती बेटियों पर लेख  के संबंध में उन मेडम के विचार जानने के लिये हमने मैडम से समय लिया था |

शांत वातावरण हरियाली के बीच  मैडम का चेंबर था ,बड़ी सी कुर्सी पर बैठी वह अपने किसी काम में व्यस्त थी, हम दोनों को देखते ही उनके चेहरे पर एक बड़ी ही प्यारी मुस्कान आई और उन्होंने हमें बैठने के लिए कहा, हम उनके सामने वाली कुर्सी पर बैठ गए  दो मिनट में ही हमारे सामने चाय हाजिर हो गई, हमने चाय की चुस्की के बीच उनसे चर्चा शुरू,  किशोरियों के साथ  होने वाले अपराधों और आए दिन कहीं ना कहीं रेप की खबरें पढ़कर इस समस्या के निदान के लिए आपके क्या विचार हैं ?

  उन्होंने कहा आज से तीस पैतीस वर्ष पहले जो बात सात परदों में थी, वो बच्चे बच्चे के हाथ मे आ गयी है ,कैसे कंट्रोल करेगे ?

 सब लोग आदर्शवादी हो नही सकते ? ये उम्मीद करना भी बेमानी है |

मेरी मित्र ने कहा वो कैसे ?

उन्होंने कहा ज्यादातर  बलात्कारी आपराधिक रिकार्ड से मुक्त होते है,उनका कोई रिकार्ड पहले से नही होता है ,एक जुनून ,शेतान सवार होता है और रेप हो जाता है|

 बाहर के बलात्कारियों के लिये तो कानून है लड़ने के लिए, लेकिन समाज और परिवार में छिपे बलात्कारियों से कैसे निपटें ?

इनके लिए कही कही खुद किशोरियां भी जबाबदार होती है |

बच्चो को सेक्स आसान लगने लगा है तभी ये अपराध होते है | जिन महिलाओं का नोकरी का समय फिक्स नही होता, शिफ्ट के हिसाब से ड्यूटी  होती हैं उनके लिये चुनोती भरा काम होता है, बच्चो की देखभाल ,मैं खुद को भी इनमें शामिल कर लेती हूँ| आपके कितने बच्चे हैं मेरी पत्रकार मित्र ने पूछा,

 धन्यवाद है, भगवान का कि मुझे बेटी नहीं है  इस नौकरी का  फिक्स टाइम नहीं होता मैं चैन से नौकरी कर सकती हूँ या बेटी की चौकसी कर सकती हूँ |

दोनो काम सम्भव नही है आज के माहौल को देखते हुए|

मुझे लग रहा था वो मेडम सही थी |

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इन्दु सिन्हा”इन्दु”

रतलाम(मध्यप्रदेश)