ये काश कहीं ऐसा होता
परिंदो कि तरह खुले असमां में सांस ले सकते
हर मंजिल पाना आशां तो नहीं, पर
पाने की खुशी मे बस चलते रहते।
हर सांस मे बसा लूं उस ख़ुशी को
जो गमों के अशियानो में आ रुकी हो ।
ये काश कहीं ऐसा होता…
कि गमों की आंधी मे भी
खुशी के अश्कों मे बदलते रहते
ये मुमकिन तो नहीं पर कोशिश करते रहते
इन अश्कों से ही हम अक्सर
कमजोर बना करते है
ये काश कहीं ऐसा होता
आस्था तिवारी
बिल्हौर कानपुर उत्तर प्रदेश