नूतन वर्ष

नव प्रभात की नवल रश्मियां,

पाहुन का करती सत्कार।

पुष्पित और पल्लवित होकर,

नूतन वर्ष खड़ा है द्वार।

बीते वर्ष नवरूप प्रकृति का,

आसुरी रूप दिखा शक्ति का।

जहरीला जल मेघ से बरसा,

उदित हुआ दुर्भाग्य सवेरा।

व्यथा अभी तक न भुला कोई,

भूल न पाया हाहाकार।

पुष्पित और पल्लवित होकर

नूतन वर्ष खड़ा है द्वार। 

पिता सजाता पुत्र की अर्थी,

कही बने दोनों अभ्यर्थी।

कहीं चिता में आहुति पाई,

कहीं कफन बिन हुई बिदाई।

कहीं संग संग विदा हो गया,

खुशियों भरा परिवार।

पुष्पित और पल्लवित होकर

नूतन वर्ष खड़ा है द्वार।

दनुज देव से हार गया जब,

सृजन शौर्य के द्वार गया तब।

भू परिष्करण धरा का होता,

अभिनंदन वसुंधरा का होता।

कण कण पावन कोंपल फूटी,

उठा प्रफुल्लित ज्वार।

पुष्पित और पल्लवित होकर

नूतन वर्ष खड़ा है द्वार।

सीमा मिश्रा ,बिन्दकी, फतेहपुर-उत्तर प्रदेश