अब करता नहीं कोई इंतज़ार ..

सांता भी है सोच में डूबा

ले जाऊं तोहफे क्या

बिता ज़माना वो जब बच्चे खेला

 करते थे खेल खिलौनों से

अब तो पैदा होते ही होता हाथ में मोबाइल

 चढ़ा भेंट यूँ बचपन सारा

इलेक्ट्रॉनिक गैज़ेट की

क्या दुधमुहे , क्या थोड़े बड़े ,

 क्या युवा, क्या बड़े सब बस गढ़े रहते 

मोबाइल, टेबलेट,लैपटॉप, पी .सी

व अन्य उपकरणों में

फिर क्या काम मेरे खिलौने, टेडी, चॉकलेट का

अब करता नहीं कोई इंतज़ार मेरा

इसलिए हर क्रिसमस हो जाता मैं भी उदास

हाँ जो बच्चे , बड़े या बूढ़े रहते

 सड़कों पे फुटपाथों पे लड़ते

जहां भूख, सिर पर छत , तन पर कपड़े वहीं कपकाते कड़ाके की सर्दी से 

देख उन्हें ज़रूर भर आतीं हैं आँखें मेरी

और पड़ जाता हूँ सोच में कैसे दूँ राहत उनको

कैसे लाऊं उनके चेहरों पर सुकून की मुस्कान

काश मैं सांता सच में बन पाता

 मसीहा इन ज़रूरत मंदों का 

भर भर राहत पहुंचा देता उनको उनकी मनचाही।।

…..मीनाक्षी सुकुमारन

      नोएडा