नई आस

बहुत दिनों के बाद अब जगी हैं एक नई आस

हर्षोल्लास के दिन भी थे ये दिलाती हैं एहसास

खेलते दौड़ते थे बच्चे और बतियातीं थी हम

 खो गया था ,हो गया था ये सब एक स्वप्न

जाते थे खुश खुश लाने घर का सामान

और अब दौड़ते भागते घर  की राह ढूंढते हैं आसान

जाते थे जब घूमने फिरने

और लेते थे आस्वाद व्यंजनों का

अब घर में ही लेते हैं स्वाद हर व्यंजन का

काश अब नए साल में लौट आए दिन पुराने

और न आए दोबारा वो दिन 

अनचाहे

खूब जमेगी महफिलें दोस्तों की

और होगी मुलाकातें हरदम

नई आस अब नए साल में नए वरण के साथ आएं

अब तो गए बीत हैं बरसों तरसते हैं रिश्ते

खुलके जीने को हैं ये मन तरसे

जयश्री बिरमी

अहमदाबाद