ग़ज़ल

टूटे थे जो फूल तुम्हारे जूड़े से।

गिरते देखे चाँद सितारे जूड़े से।

मांग में सिंदूर तभी तो जंचता है,

लेते हैं अंलकार सहारे जूड़े से।

दम्पति कश्ती ही इक खेवटहारा है,

पाते हैं सब लोग किनारे जूड़े से।

जैसे नकली फूल सजावट देते हैं

जंचते हैं कुछ लोग उधारे जूड़े से।

अभिनय भी तो सुन्दरता की आय है,

करते हैं कुछ लोग गुजारे जूड़े से।

सारी महफिल ही जख्मों से छलनी है,

किस ने छोड़े तीर कुंवारे जूड़े से।

उसने अपनी फिर कलघोष अदाओं से,

लाखों टूटे दिल उतारे जूड़े से।

सबको लौ की शक्ति का वरदान मिले,

सुबह-सुबह सूरज के प्यारे जूड़े से।

भौहों, चितवन, नयनों का गज़ब नियंत्रण,

आकर्षण बढ़ता और संवारे जूड़े से।

एक पर्वत से लावा बनकर फूटे है,

सुन्दरता के अभिन्न शरारे जूड़े से।

कविता, ग़ज़ल, कहानी, नावल, दोहे, छंद,

निकले सभ्याचार नज़ारे जूड़े से।

घर में फिर खुशहाली का माहौल बने,

गुढि़या के इस राज दुलारे जूड़े से।

‘बालम’लाख सपेरे इसके दीवाने,

निकले लाखों सांप न्यारे जूड़े से।

बलविन्दर ‘बालम’ गुरदासपुर

ओंकार नगर, गुरदासपुर (पंजाब)

सम्र्पक 9815625409