ग़ज़ल —-

मैं  कुछ   बेहतर  ढूँढ़   रहा   हूँ

घर  में   हूँ   घर   ढूँढ़   रहा   हूँ

घर    की    दीवारों    के   नीचे 

नींव  का  पत्थर   ढूँढ़  रहा   हूँ

जाने   किसकी   गर्दन   पर   है 

मैं   अपना   सर   ढूँढ़   रहा   हूँ

हाथों     में      पैराहन      थामे 

अपना    पैकर   ढूँढ़    रहा   हूँ

मेरे   क़द   के   साथ   बढ़े   जो 

ऐसी    चादर     ढूँढ़    रहा    हूँ

                           विज्ञान  व्रत

मोब .  09810224571

एन – 138 , सैक्टर – 25 ,

नोएडा – 201301