ग़ज़ल

बस प्यार मुझे तुमसे,बस तुमसे ही चाहत है।

जो दिल से समर्पण है,बस वो ही इबादत है।।

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दीदार  तेरा  करने  आँखें  ये  तरसती  फिर।

इक बार तुम्हें देखूँ इस दिल की ये हसरत है।।

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तुम दूर  बहुत  मुझसे, हम दूर  बहुत  तुमसे।

नजरों  में  बसे  हरदम,कैसी  ये  मुहब्बत है।।

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गफ़लत है बहुत  उनको,वो रूठ के बैठे जो।

शिकवे है बहुत हमसे, हमसे ही शिकायत है।

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खामोश  रहेगें  लब, कुछ भी न  कहेगें अब।

आँखोँ में  पढ़ो मेरी  लिख दी जो इबारत है।।

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धड़कन में  मेरे दिलवर, तेरी ही  रवानी अब।

ये साँस चले  जब  तक तू मुझमें सलामत है।।

कृष्णदीवानी_अंजली️

Shivpuri M.P. 473551