तारे जमीं पर

सुनों !

उज्जवल प्रकाश के

अनंत आकाश में ,

औऱ..

इस विस्तृत सी जमीं पर ,

प्रतिभाओं की कहीं कमी है

क्या इस जमीं पर !!

माना,

कुछ अभी छिपे-छिपे से हैं,

गुमसुम से..

कुछ दबे हुए हैं ,

मुश्किल में हैं ,

कुछ असमंजस में भी,

कर्तव्यों से बंधे हुए हैं !!

पर, एक दिन..

“धुंध के बादल” छंट जाएंगे ,

ये भी चमकेगें..

इतराएंगें..

जग को रोशन कर जाएंगे,

जब ये तारे

हां, ये ही तारे

इस जमीं पर आएंगें !!

उस दिन..

यह सूरज भी नमन करेगा ,

स्वयं ही उठकर

इनका वंदन करेगा ,

हां, जब बिखरेंगें ये तारे जमीं पर,

इसी जमीं पर !!

नमिता गुप्ता “मनसी”

उत्तर प्रदेश , मेरठ