प्रेम गली का जिसने ना किया सफर।
वो क्या जाने प्रेम का अद्भुत मंजर।
इतने भी तुम क्यों हो गए मजबूर।
जो रहे अमूल्य प्रेम रत्न से तुम दूर।
वो क्या जाने प्रेम का होता क्या नूर।
जिस पर चढ़ा नहीं ये प्रेम सरूर।
आसमा संग जमीन बन गया प्रेम।
आ गया मुझको प्रेम पर गुरुर।
ना देख चांद आज उदास चकोर।
उसके प्रेम की तो वही है भोर।
बादलों की आस में नाचे ना मोर।
उदास अवनि देखे अंबर का छोर।
जो कोई सहलाए मन का पोर-पोर।
मिल जाए जो कहीं कोई चितचोर।
बना लेना आराध्य बिना कोई शोर।
मिलेगी देखना जिंदगी को नव भोर।
वीनस जैन शाहजहांपुर