हे नववर्ष!

तुम भी दगा न करना

आओ हे नववर्ष!तुम हमसे कोई दग़ा न करना 

बीते जैसे साल पुराने वैसी कोई ख़ता न करना।

पहले के ज़ख्म़ों से ही चाक शहर का सीना है

नये साल में दर्द मिलें किसी को ख़ुदा न करना।

मेरी इल्तज़ा तुझसे बस इतनी है हे नववर्ष

अपनों को यूँ अपनो से तुम ज़ुदा न करना।

संकट के इस दौर में तू पूरे मन से पूजा जाएगा 

फरिश्ता साबित होगा , किसी का बुरा न करना।

संकट से जूझ रहे हैं सब,विषाद से गहरा नाता है

ऐसे में आकर के शेष जीवन बे-मज़ा न करना।

सबका हो सुनहरा आने वाला हर एक पल

किसी के लिए कोई भी बुरी बद्दुआ न करना ।

आशीष तिवारी निर्मल 

लालगाँव

जिला रीवा ( मध्य प्रदेश)