सृजन में खोया कवि….

सृजन में खोया कवि,

अपनी कल्पनाओं का

साम्राज्य बसाए रखता है!

असीमित अथाह भूमि,

नदियां झीलों सागर,

और संपूर्ण आसमान पर भी

अपने सृजन का

अधिकार बनाए रखता है!

कल्पनाओं की कलम को

रंग बिरंगे नजारों में

सुनहरे सूरज,

चांद सितारों में डुबोए 

सृजन में खोया कवि,

सरहदों और अंकुशों 

से परे, रचनात्मकता

की दौड़ लगाए रखता है!

अपनी कल्पनाओं के

जादुई कालीन पर 

बैठा कवि,

चाल, गति और 

दूरी की सीमाओं से 

परे होता है।

और तो और

कौन रोक पाए

उस नवीन सृष्टिकार को,

जो हवाओं में रंग,

और ज्वालामुखी में

बर्फ भर देता हो!

जो बादलों में ज़मीन

और आसमान में

छत कर देता हो!

अपनी अलौकिक 

सृजन शक्ति से

सात भोर की दशा

बदल सकता है,

सृजन में खोया कवि।

~ ऋद्धिका आचार्य

बीकानेर, राजस्थान।