पलकों के बंद होते ही
मन तितली सा उड़ चलता है
होंठों पर खामोशी लाकर
अनंत आकाश में मन
बादलों की सैर कराता है
अनगिनत ख्वाब वो
बंद पलकों से रूबरू कराता है
कभी आसमां में उड़ान भरने को
कभी सागर की गहराई में
गोते लगाने पहुंच जाता है
मन की आंखें तितलियों सी
अनेकों रंग बिरंगे सपने दिखा जाता है
और कभी उदास सा
वो गहराई में खो जाता है
बंद पलकों से ही तो मन
हौसलों की उड़ान भरने की चाहत
सबके भीतर भर जाता है
मन तितलियों सा उड़ान भरता है
अनुराधा प्रियदर्शिनी
प्रयागराज उत्तर प्रदेश