आँगन में खुशियाँ उतरी तो ,
तन की पीड़ा सह गई !
अधर रह गये मौन अगर तो ,
मन की मन में रह गई !!
आँख मूंद कर सच स्वीकारा ,
घूंट मिले अपमान के !
सीख मिली थी बचपन से जो ,
अपनाई बस ध्यान से !
दंश सहे हैं हँसते हँसते ,
कथा नयन से कह गई !!
साथ अगर तुम ना दे पाये ,
बने रहो गवाह अभी !
कसमें खाई थी जो तुमने ,
भूल गये न आज सभी !
मान चाहिये मर्यादा को ,
मिला , वही मैं गह गई !!
चाल समय की बड़ी अनूठी ,
आज हार कल जीत है !
गाँठ बंधी जो छूट न पाये ,
कस कर बांधी प्रीत है !
बही गंध जो पवन संग है ,
उसकी हद में बह गई !!
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )
9425428598