हर स्त्री का नसीब होता है आग में तपना,
कुछ निखर कर सोना बन जाया करती हैं,
कुछ बन जाती हैं राख……
कुछ बटोर लेती हैं खुशियां जीवन भर की,
कुछ रह जाती हैं खाली हाथ…..
के हौसलों पे,
कहां मेहरबां ये बेड़ियां होती हैं जनाब,
ये तो कठपुतली बन जाती हैं आडंबरों की……
और हसरतें तमाम उम्र पीछा किया करती हैं,
ज़ंजीरों में जकड़े हुए ख़्वाबों की…….
यूं अटक जाते हैं ख्वाब पलकों की कोर पे,
और सूख जाते हैं नयन अश्कों के छोर तक……
दिल में आज भी गुजरती है इक आस’
तंग गलियों से, अरमानों की जंजीरों में जकड़ी हुई,
ख्वाबों के बोझ तले पीछा करती है सुकून का……
बस जरा हौसला चाहिए,
शाख से जुड़े रहने का हुनर चाहिए,
तारों भरे आसमां पे लटकने का सलीका चाहिए,
सूरज सा तपकर दुनियां रोशन करने का जज्बा चाहिए,
चांद सा शीतल होकर अंधेरे को निगलने का हौसला चाहिए,
हां, मुझे हौसला चाहिए ,
दुनियां में बने रहने का बस हौसला चाहिए………………✍️
#अक़्स (अल्का शर्मा)