मझधार में छोडा था जहॉं
आज भी खडा हूूॅ वहा
ये बात जरा कहना उसे,
ओ मांझी, जरुर कहना उसे
कश्ती में छोड अकेला मुझे
खुद साहिल पर जा पहुचे
ये बात बहुत चुभी है मन में,
ये जरा समझाना उसे
जिंदगी अब भी मेरी बिंदु है वही
तुम किसी रेखा की तरह
बढते गए बहुत आगे
मैं आज भी उसी जगह
बिंदु बन के खडा हू
ये बात जरा कहना उसे
वो ना समझा है,
ना ही समझेगा मुझे,
मगर ये बात जरा कहना उसे
आया पतझड, दूर तक फैली तन्हाई,
ऐसे मौसम में साथ उसने छोडा,
बदले मौसम, बदली हवाए,
साथ में बदले, उसके मिजाज,
वक्त हो या हो मौसम,
एक दिन बदलता जरूर है,
ये बात जरा कहना उसे
विदा हो गया है पतझड,
फिर बहार आई है,
पर्ण विहीन दरख्तों पर,
कोंपलें फिर फूट आई है,
ये बात जरा कहना उसे
मैं न भुला हूँ
और ना ही भूलूंगा उसे
ये बात कहना उसे
मैं शमां की तरह
जल रहा हूँ आज भी
तुम्हारी अंधियारी रातों का
उजाला बनने के लिये
कई दिवसों तक जला हूँ मैं
घोर अमावस होने पर भी
साथ कभी नही छोडा मैंने
मगर ये क्या
तुम पुनम के चाँद की रोशनी में
मुझ शमां को भुलते गये
मैं आज भी शमां
बन के जल रहा हूँ
ये बात जरा कहना उसे
वो ना आया है
ना आयेगा कभी
फिर भी ये बात
जरा कहना उसे।।
श्रीमती शकुन्तला पालीवाल
पत्नी श्री विक्रम सिंह बया,
448 शास्त्री सर्किल,
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