हर दर्द सहे हम जिनके लिए मुँह फेर के हमसे बैठे हैं।
हम तो विरही अपने जैसे पर पता नहीं वो कैसे हैं।
जबतक पैरों पर खड़े न थे हर नाज उठाया करते थे।
हर महफ़िल में हर लोगों से सरताज बताया करते थे।
जब निकल गया मतलब उनका मेरे बदले अब पैसे हैं।
बता इस दिल का हम अब भी उनको अपना माने।
वो लाख साजिशें रचते हैं फिर भी उनको अपना जाने।
ये हुश्न की पहली आदत है बिल्कुल वो अपने जैसे हैं।
पूछा हमने अपने दिल से क्यों गीत उन्हीं के गाते हो।
वो तीर और शमशीर बने फिर भी क्यों गले लगाते हो।
दिल बोला उनका काम करें हम तो विरही बस ऐसे हैं।
वीरेन्द्र मिश्र ‘विरही’गोरखपुर
उत्तर प्रदेश 8808580804