लिखी है भूमिका गर आपने
कथानक आप ही लिख देना।
जीवन के सार संग्रह में
मेरा भी नाम लिख देना।
विरोधी है जगत सारा,
सुकोमल भावनाओं का ।
उमड़ता ज्वार है मन में,
विरह की कल्पनाओं का।
मुझे कब ज्ञात है प्रियवर,
लिखा क्या भाग्य में मेरे।
हृदय की साधना का पुण्य,
भरना साध्य में मेरे।
डुबा दे वो इसे या फिर
उबारे नाव भँवरों से।
उसे ही नाथ!जीवन
नाव की पतवार है खेना।
अंजना मिश्रा,
भाटपाररानी-देवरिया
उत्तर प्रदेश