लौट आएंगे हम-तुम भी..

जैसे लौट आती हैं चिड़ियां

दिन भर की उड़ान के बाद

थकी-हारी

वापस घोंसलों में ,

जैसे लौट आते हैं बीज

ओढ़े हुए

अनंत संभावनाओं के कवच को ,

हरियाली के सफर के बाद

चुपचाप

सूखे हुए फूलों में ,

जैसे लौट आती हैं बारिशें

समेटे हुए

तमाम नदियों को ,

और उड़ेल देती हैं

अपना सर्वस्व

जी भर

रेगिस्तानों में ,

जैसे लौट आता है प्रेम

बगैर ही किसी 

मिलने-बिछुडने की शर्तों के साथ ,

अनसुना करते हुए

सारी नसीहतें

ग्रह-नक्षत्रों की ,

सुनते हुए सारी फटकारें

जन्म-जन्मांतरों की ,

सुनों..

लौट आएंगे हम-तुम भी

घोंसलों में

चिड़ियां की तरह ,

बीजों में

फूलों की तरह ,

रेगिस्तानों में

बारिशों की तरह ,

एक-दूसरे की कविताओं में

ठीक प्रेम की ही तरह !!

नमिता गुप्ता “मनसी”

मेरठ , उत्तर प्रदेश