ग़ज़ल

इश्क़ पर उसने भरोसा कर लिया।

जान कर फिर से ख़सारा कर लिया।//1//

एक ही इंसाँ था मुझको क़ाफ़िला।

उसने भी मुझसे किनारा कर लिया।//2//

जलता था जो रात भर जुगनू की तरह।

क्यों खुदी को ही अंधेरा कर लिया।//3//

मैं किताबो में उसे ही देखता।

देखते उस को सवेरा कर लिया।//4//

जान से भी ज़्यादा चाहा था जिसे।

खुद को मेरा कातिलाना कर लिया।//5//

दुश्मनों से हाथ मेरा क्या मिला।

दोस्तो ने भी बेगाना कर लिया।//6//

चांद मुझ को भी मयस्सर ही नहीं

चांदनी को मैने दिवाना कर लिया।//7//

गुनगुनाने को मिला ही क्या उसे?

    नाम मेरा ले तराना/कर लिया।//8

तबरेज़ अहमद

बदरपुर नई दिल्ली