इश्क़ पर उसने भरोसा कर लिया।
जान कर फिर से ख़सारा कर लिया।//1//
एक ही इंसाँ था मुझको क़ाफ़िला।
उसने भी मुझसे किनारा कर लिया।//2//
जलता था जो रात भर जुगनू की तरह।
क्यों खुदी को ही अंधेरा कर लिया।//3//
मैं किताबो में उसे ही देखता।
देखते उस को सवेरा कर लिया।//4//
जान से भी ज़्यादा चाहा था जिसे।
खुद को मेरा कातिलाना कर लिया।//5//
दुश्मनों से हाथ मेरा क्या मिला।
दोस्तो ने भी बेगाना कर लिया।//6//
चांद मुझ को भी मयस्सर ही नहीं
चांदनी को मैने दिवाना कर लिया।//7//
गुनगुनाने को मिला ही क्या उसे?
नाम मेरा ले तराना/कर लिया।//8
तबरेज़ अहमद
बदरपुर नई दिल्ली