मेरी पहचान

सोचती हूं ये मैं अकसर 

मेरी पहचान क्या है ? 

सोचती मेरे दिल में बसी

मेरी रुह मेरी जान क्या है।।

गरदिशों में मैं तो कलम संग उड़ना चाहती हूं

काट देते पंख मेरे अपने बताओ मेरी मान क्या है।।

अपनी जिम्मेदारियों को भी खूब मैं निभाती हूं

फिर भी कहते हद न उलांघना मेरे जज़्बात क्या है।।

मन के भीतर एहसास मैं लिख घुटती जाती हूं

मेरे अपने ही न समझे मुझे की मेरे एहसास क्या है।।

मारती जाती हूं मैं अकसर अपनी हर ख्वाहिशों को

कोई न समझे कि मेरी ख्वाहिशों का सम्मान क्या है।।

वीणा कि झंकार को बताओ कौन रोक पाया है

चार दीवारी से भी सुनो सब वीणा की झंकार क्या है।।

वीना आडवानी तन्वी

नागपुर, महाराष्ट्र