ग़ज़ल

मेहनतकश  ने  ठाना है।

इस  सत्ता  को जाना है।

वोट   हमारा   पैसा  भी,

काम  मगर  मनमाना है।

उसकी  है  दुनिया  सारी,

जिसके पास ख़ज़ाना है।

टक्कर लेगा उससे कौन,

जिसके  साथ ज़माना है।

पीने   वाले   बढ़ते  रोज़,

पग पग पर मयखाना है।

हमीद कानपुरी,

अब्दुल हमीद इदरीसी,

179, मीरपुर, छावनी,  कानपुर-4