अपना भरोसा अपनी पहचान..

अच्छा हुआ तुम छोड़ गए

मुझ से मुंह को मोड़ गए

मैंने खुद को समझाया है

विरल भांति  से बहलाया है

अब देखो सरल ही जीते हैं

ना बिष घट को पीते हैं

है त्याग तुम्हारा भी वरदान

जो जीवन को जीवन देते हैं

कर्तव्य पथ बस दिखता है

बिन तुम सरल ही दिखता है

ना अब सावन है ना बसंत

मन ही मंदिर मन है महंत

ना दुख ना कोई संशय

आगे बढ़ने का है निश्चय

मन तो एक मतवाला था

फिजूल ही बांधा संभाला था

कष्टमय समय का फेरा था

संपूर्ण गगन अब मेरा है

अब रुक ना मुड़ना ना मुझको

अंबर पार देखना है खुद को

मूर्खता की वह भरपाई था

खुद से खुद को भरमाया था

पहले रहेगा खुद का सम्मान

अपना भरोसा अपनी पहचान

 रेखा शाह आरबी

यूपी  बलिया