नेता को मिले सदा, कुर्सी से सम्मान
फिर खुद को वो समझता, सबसे बड़ा महान
जिसको भी मिलता यहाॅं, नेताजी से प्यार
उसका हो जाता सदा, जीवन बेड़ा पार
कुर्सी मिलते जो यहाॅं, फिर कमाए दिन रात
पहले दिन से ही करें, देखो वो शुरुआत
नेता रखता है सदा, चमचों का ही ख्याल
फिर उसी पर उठते, देखो कई सवाल
जो भी लूटे देश को, मत करिये सम्मान
हर मोर्चे पर ही करें, बार-बार अपमान
जब से ही नेता बना, कुर्सी का वो दास
तब से बताता खुद को, रमेश खासमखास
अच्छे नेता का करें, आप सदा सम्मान
जो जनता को मानता, देखो एक समान
कुर्सी को ही समझता, जो नेता संसार
फिर तरकीब से करता, अपना वो विस्तार
कुर्सी हेतु हरदम ही, नेता है मजबूर
चुनाव के समय न रहे, जनता से वो दूर
चुनाव आते टेकता, जनता आगे माथ
वोटिंग तक न छोड़ता, जनता का वो साथ
उस नेता का हारकर, खतम हुआ अध्याय
पाॅंच साल जिसने किया, जनता साथ अन्याय
कुर्सी से छोटा लगे, जिसे भी यहॉं ज्ञान
ऐसे नेता को कभी, माने न गुणवान
गरज पड़े आते तभी, नेता जनता द्वार
कुर्सी हेतु वे करते, नरम सभी व्यवहार
लग जाता रमेश जिसे, कुर्सी का जब रोग
मरते दम तक फिर करें, इसका ही उपयोग
पॉंच साल तक भोगती, जनता कारावास
नेता फिर आता नहीं, जनता जाती पास
कहने को कहते सदा, श्रेष्ठ है जनतंत्र
मगर आमजन आज भी, रहता है परतंत्र
कुर्सी नेता की बनी, पॉंच साल तक बैर
नहीं भरोसा बाद का, जनता है किस और
रमेश मनोहरा
शीतला माता गली जावरा (म.प्र.)
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