जीवन के संधि पत्र

जीवन की उबड़ खाबड़

धरा को चाहूं

सिर्फ समतल प्रदेश

ए जिंदगी तुझसे तो

ना चाहा कुछ विशेष

रोक कर बैठे हैं

राग प्रीत का परिवेश

सर्वस्व इच्छाओ के होते

घूमते बैरागी सा भेष

ए जिंदगी तुझसे तो

ना चाहा कुछ विशेष

कुसुमो से नर्म हृदय का

पत्थरों से संधि किए हैं

जिम्मेदारियों के हाथ

यह संधि पत्र भर दिए

ना पकने  दिया खुद में कहीं

प्रेम प्यार के अवशेष

ए जिंदगी तुझसे तो

ना चाहा कुछ विशेष

घिरे रहे समुंदरों से

फिर भी प्यास अधूरी रही

खारे पन और मीठे पन की

हल्की सी दूरी रही

जिंदगी से मिलता रहा

अपरिवर्तनीय संदेश

ए जिंदगी तुझसे तो

ना चाहा कुछ विशेष

रेखा शाह आरबी

बलिया यूपी