बिगड़ी हुई औलाद

एक बिगड़ी हुई औलाद भला क्या जाने

कैसे   माँ-बाप  के होंठों से हँसी जाती है…!

कौन-सी बात कहाँ, कैसे कही जाती है

ये सलीक़ा हो, तो हर बात सुनी जाती है…! 

जैसा  चाहा  था तुझे, देख न  पाये दुनिया

दिल में बस एक ये हसरत ही रही जाती है..! 

एक बिगड़ी हुई औलाद भला क्या जाने

कैसे   माँ-बाप  के होंठों से हँसी जाती है…!

 कर्ज़ का बोझ उठाये हुए चलने का अज़ाब

जैसे सर पर  कोई दीवार  गिरी  जाती है…! 

अपनी पहचान मिटा देना हो जैसे सब कुछ

जो  नदी है  वो समंदर से  मिली  जाती  है..!

 पूछना  है तो  ग़ज़ल वालों -से पूछो  जाकर

कैसे  हर  बात  सलीक़े से  कही /जाती है…!

साभार – लब्धप्रतिष्ठ शायर वसीम बरेलवी

संकलन -निर्मल कुमार शर्मा, ‘, गाजियाबाद, उप्र,संपर्क – 9910629632,