धर्म नहीं मन को बदलूँगा…

धर्म नहीं मन को बदलूँगा ।

मानवता के पथ को चलूँगा ।

कभी नहीं परिधान बदलकर 

अपने सच्चे मन को छलूँगा ।

धर्म नहीं मन को बदलूँगा ।

अपकार नहीं उपकार करूँगा ।

नफ़रत नहीं बस प्यार करूँगा ।

दूर हो नफ़रत की ज्वाला से

अपने ही मन के साथ चलूँगा ।

धर्म नहीं मन को बदलूँगा ।

निडर होकर जग में रहूँगा ।

सच्चे मन से बात कहूँगा ।

आत्मा ही परमात्मा है तो

नहीं किसी पर दोष धरूँगा ।

धर्म नहीं मन को बदलूँगा ।

ले उम्मीदों को जी जाऊँगा ।

सारे अश्कों को पी जाऊँगा ।

छोड़ सुगम जीवन राहों को

दुर्गम राहों पर पाँव धरूँगा ।

धर्म नहीं मन को बदलूँगा ।

काम क्रोध से दूर रहूँगा ।

कभी नहीं मजबूर रहूँगा ।

बहते श्रम की बूदों को ही

अपने करमों का फल कहूँगा ।

धर्म नहीं मन को बदलूँगा ।

सूरत नहीं सीरत बदलूँगा ।

चाल-चलन नीयत बदलूँगा ।

देशहित अपने सीने पर

दुश्मन की गोली ले लूँगा ।

धर्म नहीं मन को बदलूँगा ।

एम•एस•अंसारी”शिक्षक”

गार्डेन रीच 

कोलकता