धर्म नहीं मन को बदलूँगा ।
मानवता के पथ को चलूँगा ।
कभी नहीं परिधान बदलकर
अपने सच्चे मन को छलूँगा ।
धर्म नहीं मन को बदलूँगा ।
अपकार नहीं उपकार करूँगा ।
नफ़रत नहीं बस प्यार करूँगा ।
दूर हो नफ़रत की ज्वाला से
अपने ही मन के साथ चलूँगा ।
धर्म नहीं मन को बदलूँगा ।
निडर होकर जग में रहूँगा ।
सच्चे मन से बात कहूँगा ।
आत्मा ही परमात्मा है तो
नहीं किसी पर दोष धरूँगा ।
धर्म नहीं मन को बदलूँगा ।
ले उम्मीदों को जी जाऊँगा ।
सारे अश्कों को पी जाऊँगा ।
छोड़ सुगम जीवन राहों को
दुर्गम राहों पर पाँव धरूँगा ।
धर्म नहीं मन को बदलूँगा ।
काम क्रोध से दूर रहूँगा ।
कभी नहीं मजबूर रहूँगा ।
बहते श्रम की बूदों को ही
अपने करमों का फल कहूँगा ।
धर्म नहीं मन को बदलूँगा ।
सूरत नहीं सीरत बदलूँगा ।
चाल-चलन नीयत बदलूँगा ।
देशहित अपने सीने पर
दुश्मन की गोली ले लूँगा ।
धर्म नहीं मन को बदलूँगा ।
एम•एस•अंसारी”शिक्षक”
गार्डेन रीच
कोलकता