जिंदगी और मौत

जिंदगी और मौत के रिश्ते का सच सुहाना होता है

जो जन्म के वक्त से ही नैसर्गिक बंधन में बंधा होता है.

न दिखने वाला यह अटूट रिश्ता होता है

जो जिंदगी के आखिरी वक्त तक टिका होता है.

इनके रिश्तों की गहराई का समंदर तो देखो

डूबते सूरज की तरह ही खूबसूरत होता है.

जिंदगी और मौत एक दूसरे के हमसफर, हमराज हैं

जिंदगी की परछाई में मौत का अक्स दिखता है.

जिंदगी जब कभी लड़खड़ाती, मुर्झाती है 

तो मौत के सहारे भी जिंदगी का संभलना होता है.

जिंदगी और मौत के बीच प्यार का रंग है ऐसा

मौत के कंधे पर ही जिंदगी का सबब सोया होता है.

जिंदगी और मौत न तो मजहबी हैं, न ही उन्मादी

पर मौत के आगोश में जिंदगी को सुकून मिलता है.

बात जब भी जिंदगी और मौत के अस्तित्व की होती है

तो जिंदगी के बिना मौत को कहां याद किया जाता है.

जिंदगी को छोड़ देती है सारे सांसारिक रिश्ते

मौत कहां छोड़ पाती है जिंदगी से जो याराना होता है.

जिंदगी और मौत का भी होता है आमना-सामना

प्यार ही तो है अंत में रिश्ता मौत से निभाना पड़ता है.

-नवीन कुमार

एम9/बी, 303

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