बज गया बिगुल हो गया आगाज़,
चारों तरफ छायी सियासत की लाली है;
क्योंकि यूपी की फिज़ा चुनाव वाली है।।
नेता जी को सालों बाद,
फिर आयी जनता की याद;
लम्बी लम्बी फेंकने पर जिनके,
बजती जोरों से ताली है;
क्योंकि यूपी की फिज़ा चुनाव वाली है।।
नुक्कड़ गलियों चौराहों पर,
सही गलत की जंग छिड़ी है;
और हाथों में ठंडी होती,
चाय कुल्हड़ वाली है;
क्योंकि यूपी की फिज़ा चुनाव वाली है।।
वोटों की खातिर गली-गली में,
घूम रहें है जनप्रतिनिधि;
ईमानदारी का चोला पहने,
करते वो दलाली हैं;
क्योंकि यूपी की फिज़ा चुनाव वाली है।।
शिक्षा रोजगार की मची है तौबा,
स्वास्थ्य ढाँचा बेबस लाचार;
महंगाई की मार ने छीनी,
लोगों की खुशहाली है;
ये वास्तविकता चुनाव से पहले,
और चुनाव के बाद वाली है;
क्योंकि यूपी की फिज़ा चुनाव वाली है।।
प्रीति बाजपेई,रायबरेली (उ. प्र.)