एक ही सिक्के के दो पहलु

मैं क्या हूं?

मेरा वजूद है क्या?

इस प्रश्न का कौन दे जवाब!

मेरे हिस्से में आई है

बस जिम्मेवारियां…

संग लाई है ढेरों तन्हाइयां!

जबसे होश संभाला है

जिम्मेवारियों के ढेर मिले

हर कदम पे हर मोड़ पे

तन्हाइयां थी संग खड़ी!

जिन रिश्तों को कर्तव्य समझ

निभाया शिद्दत से

उसने ही रुसवा किया हमें

ज़िम्मेदारियां निभाकर

सौगात पाई तन्हाइयों की

ज्यों ज्यों उम्र घटती गई

जिम्मेवारियां बढ़ती गई

तन्हाइयां भी परवान चढ़ती गई!

अब तो दोनों एक -सी लगती

जैसे दोनों हो एक ही सिक्के के दो पहलु!!

             विभा कुमारी “नीरजा”

NoidaU P 9501376355