” बसंत “

महक रही हर कली -कली

चहक रहा हर खेत है। 

गई शरद ,आ गया बसंत 

कोयल गाती मीठे गान है। 

मन में उत्साह,तन में उमंग 

चली मंद-मंद बयार है। 

कली पर भँवरे का गुंजार 

तितलियों की मौज बहार है। 

छाई हरियाली वन-उपवन में 

नव पल्वित हर डाल है। 

हो रही प्रकृति अब जवान 

लहलाती फसलों का लुभान है। 

टिमटिमाते तारे देखो रात में 

दिवस धूप से निखरा है। 

मस्ती में हर युवक – युवती 

ऋतू बसंत तो आगाज है। 

लेकर सुगंध बह रहा पवन 

चहक रहा घर -आँगन है। 

भँवरा गाये, कोयल छेडे तान 

खुशहाल यह मधुमास है। 

राजकुमार इन्द्रेश 

प्रधानाचार्य / साहित्यकार 

जयपुर राजस्थान 

मो – 9001311561/ 8000814877