बसंत लतिका                 

ओढ़ बासंती चुनर शुभ,आगमन ऋतु राज।

धूप के परिधान मीठे ,माघ है अभिराज।

कोकिला के गान सुंदर, खग विहग मद मस्त..   

पुष्प पल्लव नव रुचिर मन,मोहते कविराज।।

है शिशिर प्रस्थान करता,त्याग कर वैराग।

उर उमंगें हैं तरंगित ,बढ़ रहा अनुराग।

सूर्य आलिंगन सुलभ हो,ऊष्म जीवन प्राण….

आ गया मधुमास ले कर ,प्रीत झंकृत राग।

बर्फ पिघली शीत ऋतु की,पर्श पुरवा गाल।

कामनाएं हों तरुण फिर,सौम्य किसलय माल।

लाज अवगुंठन लता का, है लिपटती वृक्ष…      

मंजरी मृदु आम्र की नव,पुष्प टेसू लाल।

दस दिशाएं रंग भरती ,रम्य नीलाकाश।

खेत सरसों लहलहाते, पीत कर्षण पाश।

कुंज हरियाली बिछी है, ले धरा अभिरूप….

खोल खिड़की झांकता है,भव्य शुभ सविकाश।।

काव्य कानन भौंर गुंजित, हैं मदन के गीत।

श्लथ हृदय नव कल्पना कर,सांझ स्वप्निल प्रीत।

श्रृंग को छू हाथ लेते,मन सुवासित आस….

शुचि कपासी मेघ उड़ते, तोड़ अंतर भीत।

शुचि गुप्ता