मन में इक खलिश है जो जाती नहीं
दरम्यान क्यूँ हैं सदैव ये दूरियां
एक समान इक अबूझ पहेली जैसी !
इजहार ए मोहब्ब्बत ना कर पाए
नीयत पशोपेश में तुम्हारी भी रही
जो हम दीवानों को सदा परखते रहे !
गलतफहमियां दूर हो गई ये भी सब
जब तुम्हे खुद की हर सांस में पाया
अदायगी रिश्तों में रस्मों भर की रही !
मालूम तुम्हे भी था कि आशियाना
तेरा इस रूह में रहा जहन में नहीं
आदत फिर भी आंख चुराने की रही !
रंग बिरंगे सपने है इस दिल के
ख्वाहिश दिल्लगी में यही प्रिय
अब तुझको लेकर साथ चलूँ मैं !
मुनीष भाटिया
178, सेक्टर-2, कुरुक्षेत्र
9416457695