ज़िन्दगी ज़िन्दगी ज़िन्दगी,
क्यूं मुझे छोड़कर चल पड़ी,
बख़्श थोड़ी तो मोहलत मुझे,
हसरतें कुछ हैं बाक़ी अभी।
उम्र भर बस रहा दौड़ता,
दौलतें शोहरतें जोड़ता,
बेवज़ह ही तुझे, है गुज़ारा बहुत,
ग़ैरों को उम्र भर, है पुकारा बहुत,
अब तो संग मेरे कोई नहीं,
हर ख़ुशी मैंने खोई यहीं,
सोचकर बस यही हाथ मैं मल रहा,
तुझको जी ही ना पाया कभी।
ज़िन्दगी ज़िन्दगी ज़िन्दगी,
क्यूं मुझे छोड़कर चल पड़ी,
बख़्श थोड़ी तो मोहलत मुझे,
हसरतें कुछ हैं बाक़ी अभी।
लम्हे लम्हे को मोहताज़ था,
ग़म का हर ओर ही राज़ था,
साथ खलता रहा फिर भी चलता रहा,
वो बदलता रहा और मैं जलता रहा,
जब कभी उसको भी मौका दिया,
बदले में उसने धोखा दिया,
दिल में उसके लिए थी शिकायत बहुत,
बोल पाया मैं कुछ भी नहीं।
ज़िन्दगी ज़िन्दगी ज़िन्दगी,
क्यूं मुझे छोड़कर चल पड़ी,
बख़्श थोड़ी तो मोहलत मुझे,
हसरतें कुछ हैं बाक़ी अभी।
-डॉ मनजीत दहिया ‘सिंह’
गाँव झरोठी, जिला सोनीपत
हरियाणा, पिन-131403