वेलेन्टाइन डे विशेष

“इश्क इश्क और इश्क” (वेलेन्टाइन डे विशेष)

अनवर हुसैन “अनवर”कहते है,

, इश्क काफिर को भी ईमान से हो सकता है ,

इश्क हिंदू को भी मुसलमान से हो सकता है,

 इश्क जख्मों को नमक दान से हो सकता है ,

इश्क पाबंद  किसी कैद का कब होता है ?

इसके एहसास में, जज्बात में रब होता है “

 यह हुई शायर की बात इश्क के जज्बे में ईश्वर का वास होता है | यह अनोखा और स्वर्गिक अहसास है,जो दिलों को जोड़ें रखता है | यदि आप कहीं अकेले भी हैं तब भी आपको अकेलेपन का एहसास नहीं होगा, आपको लगेगा कि आपके साथ कोई है, जो आपकी सांसों में बसा है कोई है जो आप की धड़कनों में धड़कता है | कोई है जिसके बारे में आप तन्हाइयों में सोचते सोचते मुस्कुरा पड़ते हैं |कोई तो है जो आपको अनदेखी, अनजानी डोर से मजबूती से बांधे रखता है |

जी हाँ यही डोर है प्रेम की डोर,|

 प्रेम की परिभाषा हर एक की नजरों में अलग-अलग है, इसकी परिभाषा का अर्थ और इसके उत्तर की खोज न जाने कब से जारी है ,लेकिन उत्तर अभी तक किसी के पास नहीं है ,सर जेम्स एम वेरी ने कहा है कि प्यार अगर आपके पास है तो आपको किसी चीज की जरूरत नहीं है “| और यदि आपके पास प्यार नहीं है, तो आपके पास क्या है ?इसके ज्यादा मायने नहीं होते |जेम्स बेरी का यह कथन बिल्कुल सही है कि जीवन में प्रेम और विश्वास दो ऐसी बातें हैं जिन्हें हम जबरदस्ती पैदा नहीं कर सकते |जिसके लिए चाहे कितने ही प्रयास क्यों न किए जाएं,ना प्रेम हासिल होता है,ना ही विश्वास |

 विश्वास धीरे-धीरे होता है और उसकी डोर  भी बेहद नाजुक होती है | प्रेम और विश्वास के इस रिश्ते को संभालना नहीं होता है उसे सहेजना  होता है ,प्यार के कोमल और पवित्र एहसास से |

 यदि प्रेम की गहराई में उतरे तो इसके लिए एक ही बात उससे उसकी तुलना की जा सकती है वह है “पूजा की थाली” वह इसलिए कि ईश्वर की पूजा के लिए हम “पूजा की थाली” सजाते हैं ,हमारे दिल में कितनी श्रद्धा रहती है कितने पवित्र भाव रहते हैं, निश्छल और भोले भाव, बस यही होता है सच्चे प्रेम और उसकी अलौकिक गहराई में |

 प्रेम में होता है देने का भाव टूटकर प्रेम करने की लालसा, जिसमें स्वार्थ लेश मात्र भी नहीं होता, जब प्रेमी प्रेमिका एक दूसरे की खुशी में खुश होने लगते हैं, एक दूसरे के दुख से उनकी आंखें भर आती हैं, यही प्रेम स्वयं से ऊपर उठकर एक दूसरे के मन की भाषा को समझने लगता है | मतलब यह कि दूसरे की भावनाओं को इस प्रकार से समझने लगता है, जो भावनाएं उसकी अपनी भावनाएं किसने किसके लिए क्या किया, कितना दिया ,यह सब बातें सच्चे प्रेम में गौण  होती है | 

प्रेम टिका होता है, सत्यता, विश्वास पर जहां सत्य नहीं है, वहां प्रेम नहीं है प्रेम संबंध ऐसे होते हैं जैसे पहाड़ी से गिरता हुआ झरना, जिसके आर पार हम आसानी से देख सके, कहीं कोई छल कपट नहीं होता ,प्रेम की डोर विश्वास को ठेस नहीं पहुंचने चाहिए, विश्वास चला गया वही प्रेम की डोर कमजोर पड़ने लगती है|   प्रयास ऐसे होने चाहिए  कि हम अपने विश्वास को टूटने ना दें, ना ही  छल  करें |

प्रेम की पराकाष्ठा हम अमृता ओर इमरोज से भी  सीख सकते हैं,  साहित्य की ऊंचाइयों को छूने वाली साहित्य जगत की अद्भुत और बेहद खूबसूरत सितारा थी, अमृता  की बीमारी और पैर की चोट के कारण उनकी दिनचर्या एक पलंग तक  सिमट कर रह गई थी | शरीर कमजोर हो चला था,उस पर ये पीडा | इमरोज उनके साथ ही थे उन्हीं दिनों,  एक दिन अमृता ने कहा ,इमरोज तुम मेरी सेवा में लगे हो, तुम युवा हो तुम्हें तो दुनिया देखनी चाहिए, इमरोज ने बीमार अमृता के पलंग के चक्कर लगाये ओर बोले ,

देख ली मेने दुनिया ,मेरी दुनिया तुम्ही हो,|

प्रेम के बेमिसाल रूप को  जब जब भी याद किया जाएगा, तब तक सिर्फ एक जोड़ी को याद किया जाएगा,अमृता ओर इमरोज  | प्रेम का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण,

ओस की बूंदों सा भोला पवित्र प्रेम |

हम अमृता में इमरोज को देख सकते हैं ,और अमृता में इमरोज  को,

 अमृता ने इमरोज  के लिए कहा है ,

” मैं तुम्हें फिर मिलूँगी कहाँ ?

किस तरह पता नहीं ?

शायद,

 तुम्हारी कल्पनाओं का चिन्ह बनकर ,

तुम्हारे कैनवास पर उतरूँगी 

या फिर,

 तुम्हारे कैनवास के ऊपर,

 एक रहस्यमई लकीर बन कर ,

खामोश तुम्हें देखती रहूँगी “|

 वाकई अमृता इमरोज के चित्रों में भी है, अपनी रचनाओं में भी |

प्रेम में सभी जीते हैं, प्रेम जानवरों में भी होता है ,प्रेम सभी प्राणियों में भी होता है ,लेकिन मनुष्य तो शुरू से लेकर अंत तक प्रेम में ही जीता है | प्रेम में शक्ति है ,निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा, कुछ कर गुजरने की शक्ति सच्चे प्रेम से ही हासिल होती है |

प्रेम अबूझ पहेली  भी है, जितना जाना है, उतना अंजाना भी है ,प्रेम की कोई भाषा नहीं होती, तभी तो गोरखपुरी साहब फरमाते हैं,

 ” थोड़ी बहुत मोहब्बत से ,

काम नहीं चलता ए– दोस्त |

ये तो वो मामला है, 

जिसमें  या तो  सब कुछ,

 यहां कुछ भी नहीं !!

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इन्दु सिन्हा”इन्दु”

रतलाम(मध्यप्रदेश)