गाँव की लड़कियाँ

सोलह बरस की नाजुक सी लड़की

ले निकली सर पर इक टोकरी बांस की

और चल पड़ी खेतों की ओर 

देख उसे हमने पुछा ? 

किस ओर चली अपने टोली के संग, 

देख हमें सहम सी गयी वह टोली

कोई नजरे चुराने लगी तो कोई

टोकरी छुपाने लगी अपने दुपट्टे में ,

और करने लगी गुफ्तगू आपस में सब

फिर एक लड़की निडर होकर आई सामने, 

बोलती हुई कि जा रहे पगडंडियों पर

घास -पत्ते इकट्ठा कर लाने को

अपने गाय -भैंस के लिए, 

बोलते हुए सब की सब आगे बढ़ गई, 

और मेरे अंदर अनगिनत सवाल उठने लगे

देख उनके आंखों की मासूमियत 

और निच्छल मुस्कान…. 

बस एक ख्याल आया बार-बार

ये बेबस मजबूर लड़कियाँ, 

होती है कितनी साहसी न

संघर्षों से परिपूर्ण होती राहें इनकी

फिर भी लिए फिरती चेहरे पर मुस्कान

आंखों में होते हैं इनके दो जून की रोटी 

मिल जाने भर का ख्वाब l

ममता कुशवाहा

मुजफ्फरपुर, बिहार

9957126543