वही एक किरदार अब तक गढ़ा नहीं जाता..

लिखा सब, पर “वही” क्यों हर बार लिखा नहीं जाता,

ऐसा क्या छिपा मन में..वही एक “राज” कहा नहीं जाता !!

कुछ दर्द थे अनकहे से, सह गए दर्द की दवा समझकर,

हां वही एक “दर्द” जानें क्यों..अब और सहा नहीं जाता !!

समझते हैं “वक्त” को, कुछ तो मजबूरियां इसकी भी हैं

वश में नहीं मन..अब इसको और समझाया नहीं जाता !!

कहानियां कई बनतीं रहीं-बिखरती रही, वक्त के संग-संग,

बस वही एक “किरदार”..जो अब तक गढ़ा नहीं जाता !!

जिंदगी ! इतनी नासमझ तो तुम नहीं

कि हर एक बात को जुबां से ही बतलाया नहीं जाता !!

नमिता गुप्ता “मनसी”

मेरठ, उत्तर प्रदेश