डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त, मो. नं. 73 8657 8657
अब दिन कुछ ऐसे आ गए हैं कि सांस लेने से पहले हवा से अनुमति लेनी होगी कि क्या मैं सांस ले सकता हूं? हवा को सख्त आदेश दे दिए जायेंगे कि वह बहने से पहले बताएं आज कहां, कब और किस दिशा में बहेगी और कितना बहेगी। बहने से पहले अपनी मंशा भी बतानी होगी कि वह क्यों बहना चाहती हैं। अन्यथा उसके बहने पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा।
ऐसा ही एक नया कानून तूफानी हवाओं पर भी लगा दिया गया। उन्हें देश से तड़ीपार हो जाने के कड़े निर्देश दिए गए हैं। यदि वे इसका उल्लंघन करते हैं तो उन पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। कारण, सताने वाले शेखचिल्ली के ख्वाब बुन रहे हैं और गहरी निद्रा के बाद हवाई किलो को वास्तविक रूप देने का प्रयास कर रहे हैं। इसलिए नए कानूनों का पालन करना तूफानी हवाओं की मौत पर बन आयी है। इतना ही नहीं नए कानून का चाबुक समुद्र की लहरों पर भी पड़ा है। अब वह बड़ी-बड़ी लहरों के साथ किनारे को छूने का प्रयास नहीं कर सकता। यदि ऐसा करता है तो उसकी लहरें कैद कर ली जाएंगी। इसके अतिरिक्त समस्त जल राशि दंड स्वरूप वसूल ली जाएगी। इसलिए जितनी भी हलचल, उथल-पुथल आक्रोश हो उसे अपने भीतर ही दबाकर रखना होगा। उसका प्रदर्शन करना कानूनी अपराध माना जाएगा।
नए कानून के अनुसार बगीचे के फूल सारे एक जैसे ही उगने चाहिए। उगने वाले फूल भी एक जैसे रंग के होने चाहिए। यदि फूल इन बातों का कहा नहीं मानते तो उन पर कानून की दंड संहिता लागू कर दी जाएगी। जब देश एक है तो फूल का रंग भी एक होना चाहिए। हवाएं जब हमारी सीमाओं में बहती है तो उन्हें हमारी सीमाओं का पालन करना चाहिए। समुद्र की लहरें जब हमारी जमीन पर उछल-कूद करती है तो उन्हें भी हमारी कानूनी उछल-कूद का पालन करना होगा। काश कानून बनाने वाले जान पाते कि हवा, समुद्र और सांसें जब तक चुप हैं तब तक नए कानूनों की मनमानी चलती है। किंतु यही जब सुनामी बन जाते हैं तब कानूनों की गुमनामी इतिहास के पन्नों में पढ़नी पड़ती है।