प्राण के बाण

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1-

दुख देती है जब दरिद्रता आती विपदा घड़ी घड़ी।

पड़ी पड़ी प्रतिभाएँ आखिर पगला जातीं बड़ी बड़ी।।

2-

कापुरुषों के लगा निशाना महाशूरमा चूक गए।

कोयल रही टापती मौका पाकर कौए कूक गए।।

3-

जब कवियों ने बढ़ाचढ़ा कर,

कौओं को खगराज कहा।

व्याख्या करने वालों ने तब, 

गर्दभ को गजराज कहा।।

कहा बटेरों को ब्रजरानी, 

बगुले को ब्रजराज कहा।

“प्राण” गिलहरी को गुलबदना,

बिल्लड़ को वनराज कहा।।

4-

हारे नहीं हिम्मती राणा ऊँचा और ‌ललाट किया।

कटता काठ कुल्हाड़ी से जो नाखूनों से काट दिया।।

5-

जो न बता पाते थे अन्तर केले और करेले में।

वे रस के मुखिया बन बैठे प्रजातंत्र के रेले में।।

6- 

जिनकी शक्ल देखते रोटी के लाले पड़ जाते हों।

कौओं की क्या कहूँ कबूतर तक काले पड़ जाते हों।।

उनके सम्मुख अपना माथा रोज टेकना पड़ता है।

जिन्हें देखना नहीं चाहता उन्हें देखना पड़ता है।।

7- 

अकली कुछ ऐसा हावी है नकली असली लगता है।

और असलियत वाला असली सचमुच नकली लगता है।।

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण” 

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