जीवन की समग्र अस्थिरताओं को
उलीचते हुए
शाश्वस्ताओं की तलाश में
उस दिन
मृत्यु के समक्ष
मैं सौंप जाऊंगी
अपनी समस्त कविताएं
तुमको ,
झरा देना तुम
एक-एक कर मंजरी सा
मिट्टी में
सिवाय “प्रेम-कविताओं” के ,
क्योंकि “इंतज़ार” के अलावा
कुछ है ही नहीं उनमें !!
सुनों..
रहने देना ज्यों की त्यों उनको
मेरी ही मुट्ठी में
कि तुम्हारे होने के एहसास को
मैं पल-पल जी पाऊंगी
अंत के बाद भी !!
नमिता गुप्ता “मनसी”
मेरठ , उत्तर प्रदेश