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तस्वीर मेरी देख कर
पुछता हैं वो मुझसे
क्या तुम
सच मैं एसी ही हो?
मैंने कहा-
कुछ कुछ एसी हूँ
थोड़ी पागल
थोड़ी शर्मिली-सी हूँ
आँखों में रहता है कोई
शरारतपन-सा पर
दिल से अभी बच्ची-सी हूँ
पुछा करता हैं वो
तुम्हारी ज़ुल्फ़
काली घटाओं-सी है
क्या
मन भी इतना विशाल हैं?
छोटी छोटी चीजों से
सजी होती हैं
ये मन की ख़ुशियाँ
पाने को ना अब कोई
चाहत बेशुमार हैं…
तस्वीर देख
क्या अंदाज़ा लगाते हो
तस्वीरों की
कहाँ कोई ज़ुबान होती है ?
● रीना अग्रवाल
सोहेला (उड़ीसा)