शहीद जवानों के नाम पर
एक दिया जलाते हैं
अंधकार में डूबी उनके घर में
क्यों न प्रकाश का दीपक जलाए
एक उम्मीद की रोशनी उनमें भी जलाए
सरहद पर निस्वार्थ से है खड़े
दुश्मनों का खात्मा करने में है जुड़े
है मातृभूमि से प्यार गहरा इतना
सर पर कफ़न बांधे ज़िद्द पर है अड़े
क्यों ना उनको एक तसल्ली दिलाएँ
एक उम्मीद की रोशनी उनमें भी जलाएँ
मां की हुई कोख सूनी
बहन की भाई से हुई दूरी
पत्नी ने अपना सुहाग खोया
बिना बाप के बच्चा रोया
क्यों ना उनके परिवार को हम संभालें
एक उम्मीद की रोशनी उनमें भी जलाएं
शहीद परिवारों की जिम्मेदारी उठाएं
बेटा, भाई बन शहीदों की कमी पूरा करें
पूरा देश उनके साथ है खड़ा
क्यों न एक एहसास उनको दिलाएं
एक उम्मीद की रोशनी उनमें भी जलाएं
*संध्या जाधव, हुबली कर्नाटक ✍🏻✍🏻*