ग़ज़ल

सर्जना के अर्थ भी बेकार होते जा रहे।

शब्द अक्षर जननी के व्यापार होते जा रहे।

रिश्वतों के सीस पर पगड़ी लहू लूहान है,

जो नहीं सरदार वो सरदार होते जा रहे।

सच बताता हूं तुम्हें पंजाब की त्रासदी,

बे ज़मीने लोग भी हकदार होते जा रहे।

सिर्फ भूमण्डलीकरण विज्ञान की एक खोज है,

आदमी से आदमी बीमार होते जा रहे।

बढ़ रहे हैं जिस तरह बेरोज़गारी आँकड़े,

मां पिता के फर्ज़ भी लाचार होते जा रहे।

यह परिवर्तन है, या धोखा है या मज़बूरी है,

दोग़ली नस्लों के सभ्याचार होते जा रहे।

रिश्तों के भीतर द्वंद्व युद्ध नफ़रतों की दौड़ है,

समीपता से दूर अब परिवार होते जा रहे।

नौकरी खुदगर्जियां, आज़ादियां, हकदारियां,

दंम्पति के प्यार भी बाज़ार होते जा रहे।

मालियों की परवरिश का भी तकाज़ा देख लें,

चमन अन्दर फूल भी तलवार होते जा रहे।

‘बालमा’ सजदे में आँखें बंद बेशक की हैं,

मगर सोहणे यार के दीदार होते जा रहे।

बलविन्दर ‘बालम’ गुरदासपुर

ओंकार नगर, गुरदासपुर (पंजाब)

मो. 9815625409