जीने को जी तो लेंगे मोहब्बत किये बग़ैर।
वो मानते नहीं हैं शरारत किये बग़ैर।।
ऐसे भी चंद लोग मिले इस दयार में।
पथरा गयी है जिनकी नज़र इंतेज़ार में।।
उनसे बचायें अपनी निगाहें तो क्या हुआ।
रुस्वा किये हैं हम को इनायत किये बग़ैर।।
जीने को जी तो लेंगे मोहब्बत किये बग़ैर।
महफ़िल में बे वफ़ाई का शिकवा करेंगे हम ?
क्या आप जानते हैं कि ऐसा करेंगे हम ?
आंखों में अश्क लब पे हैं आहें तो क्या हुआ ?
इक उम्र कट गयी है शिकायत किये बग़ैर।
जीने को जी तो लेंगे मोहब्बत किये बग़ैर।
हर बाम-ो-दर पे मेरी ही तस्वीर देखिये।
मेरे चिराग़-ए-इश्क़ की ‘तनवीर’ देखिये।।
तारीक आज अपनी हैं राहें तो क्या हुआ ?
दुनिया में बँट गया हूँ मैं शोहरत किये बग़ैर।।
जीने को जी तो लेंगे मोहब्बत किये बग़ैर।
(मेंहदी हसन की सुप्रसिद्ध ग़ज़ल
‘अपनी बदल गया है वो राहें तो क्या हुआ’
की बहर पर आधारित)
‘तनवीर जाफ़री ‘
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