सर्प विष नही खतरनाक उतना,
जितना जहर है मीठी जुबान से
विश्वासघात करने वालों के व्यवहार में,
भरोसा करते जिन पर करके बंद आंख
धोखा देकर अक्सर खोलते,
वहीं शख्स जग में आंख !
लगता है डर उन निगाहों से अब तो
छोटा सा जीवन चक्र मानव का,
सरलता से जीने की ख्वाहिश है !
अभिमान है एक रोग मानसिक,
उपचार करता जिसका वक़्त निश्चित ही,
फिर भी उम्रभर अहंकार में जीता मानव
लालसा स्वार्थ की जकडन में !
लड़ाई उसी अभिमान से है मेरी,
अब स्वयं को परखना चाहता हूँ !
दस्तूर गज़ब है दुनिया का,
ईर्ष्या करतें हैं तरक्की पर दूजो की,
सच्चाई का मार्ग कठिन बहुत है,
मिलती उस रास्ते पर नफरत !
समस्या सीधापन से जीने की है मेरी,
अब खुद को ही तराशना चाह्ता हूँ !
मुनीष भाटिया
178, सेक्टर-2 कुरुक्षेत्र
7027120349